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सुरक्षा बलों पर 11 माडिया आदिवासियों को गिरफ़्तार करने का आरोप, ग्रामीणों ने की रिहाई की मांग

बंदूकों के बीच फंसे अबूझमाड़ के मडिया आदिवासी

कांकेर। अबूझमाड़ में पुलिस और माओवादियों के बीच लड़ाई में फंस चुके आदिवासियों की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक बार फिर अबूझमाड़ के माडिया आदिवासियों ने पुलिस पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। ग्रामीणों ने बताया है कि 29 अगस्त की दोपहर अबूझमाड़ के अलग अलग गांवों में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ़ एक बड़ा अभियान चलाया था। इसमें तीन महिला माओवादियों को पुलिस बलों ने मार गिराया। और कई हथियार तथा नक्सलियों के रोजमर्रा के सामान जब्त किया। पुलिस इसे बड़ी सफलता मान रही है।

दूसरी तरफ अबूझमाड़ के जंगलों के बीच बसे गांवों में रहने वाले मडिया जनजाति के आदिवासियों ने पुलिस जवानों पर घरों में घुसकर तलाशी लेने और उनके रोजमर्रा के सामानों को नष्ट करने का आरोप लगाया है।

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि ओरछा ब्लॉक के ग्राम पंचायत कोंगे निवासी बुरसू पद्दा, ग्राम मरकाबेड़ा के रघु और राजेश नुरुटी, कोड़ोनार गांव के सैनु पद्दा, चैतू पद्दा और सन्नू पद्दा को गिरफ़्तार कर अपने साथ ले गई है।

इसके अलावा नारायणपुर जिले के ही ग्राम पंचायत गोम्मे के आदनार गांव के रहने वाले रामजी पददा, कांडे नुरूटी, पंडरु पददा, मूका पददा, मनकू पददा, सुकदेव पद्दा को भी पुलिस जवानों ने पकड़ा है। और इन सभी को अपने साथ लेकर गई है।

ग्रामीणों का यह भी कहना है कि जब गांव की कुछ महिलाओं ने सुरक्षा बलों का पीछा किया तब उन्हें रोकने के लिए डराया धमकाया गया। लेकिन जब इसका आदिवासी महिलाओं पर कोई असर नहीं हुआ तब जवानों ने नाले में फायर किया और गोलियां चलाई। इससे घबरा कर मडिया जनजाति की महिलाएं अपने घरों को लौट गईं।

ग्रामीणों ने कई किलोमीटर पैदल सफर करके छोटेबेठिया इलाके में बेचाघाट संघर्ष समिति जो आदिवासी समाज के कार्यकर्ताओं का आंदोलन स्थल है उनसे संपर्क किया। और मीडिया के माध्यम से पकड़े गए ग्रामीणों को छोड़ने के लिए शासन प्रशासन से गुहार लगाई है।

ग्रामीणों ने यह भी दावा किया है कि जिन गांववालों को पुलिस पकड़कर ले गई है उनमें कुछ लोगों की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हैं।

गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले ये आदिवासी नक्सलियों और पुलिस की लड़ाई में दोनों तरफ से हिंसा के शिकार हो रहे हैं। लेकिन दोनों ही तरफ के लोग इस बात से इंकार करते रहें हैं।

ऐसे में अबूझमाड़ में शांतिप्रिय जीवन जीने वाले मडिया आदिवासियों की जिंदगी की परेशानी कम होगी ऐसा नहीं लगता।

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