छत्तीसगढ़जांजगीर

ग्राम खोखरा में विराजित मां मनकादाई की महिमा निराली,

राजेश्वर तिवारी
जांजगीर चांपा – जांजगीर जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर और बिलासपुर से 40 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक ग्राम खोखरा में मां मनका दाई की महिमा अत्यंत ही निराली हैं,मां की महिमा का गुड़गान पूरे ग्रामीण सुबह – शाम नित्य प्रतिदिन किया करते हैं,जो भक्तगण सच्चे भक्ति भाव से मनका दाई के चरणों में जाकर अपनी मनोकामना मांगते हैं उस भक्त की मनोकामना मां अवश्य पूर्ण कर देती हैं,मां मनका दाई का धाम खोखरा देशी रियासतों के साधु संतों का गढ़ था,जहां अखरा देवता की गाथा सुनने को मिलती हैं,इस गांव में बहुत ज्यादा संख्या में तालाब एवं पुराने देवताओं के मठ एवं मंदिर के अस्तित्व आज भी देखने को मिलती हैं, खोखरा में मां मनका दाई,समलाई मां,काली मां,शारदा मां,शीतला मां सहित देवी देवता विराजमान हैं,मंदिरों से भरे होने के कारण यहाँ की अपनी एक अलग पहचान हैं,गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन काल में खोखरा गांव मालगुजारों(तिवारी परिवार)का गढ़ था जिसमे आसपास के लगभग चौरासी गांव इसके अंतर्गत आते थे,इस गांव में मां मनका दाई को तिवारी परिवार के कुल देवी के रूप में स्थापित किया गया था,जिसका निर्माण आज भी त्यक्ष रूप से देखने व सुनने को मिलता हैं,तभी मां मनका दाई की अद्भुत और अचरज में डाल देने वाली शक्ति सामने आई ,वर्तमान में जहां मंदिर एवं तालाब स्थापित हैं,वहा पहले घनघोर जंगल हुआ करता था, जहा लोग जाने के नाम से कांपते थे,जिस समय मां मनका दाई की महिमा सामने आई, उसी समय सुखा और अकाल पड़ा था,लोग पानी की एक एक बूंद के लिए तड़प रहे थे,तभी उसी समय तिवारी परिवार के मालगुजार की एक भैंस को लेकर एक चरवाहा उस जंगल के भीतर भैंस चराने के लिए गया और उसका भैंस गुम हो गया,चरवाहा घबराकर घर आया और उसने ग्रामीणों व मालगुजार को भैंस गुम हो जाने की खबर दी,जिससे ग्रामीण उस भैंस को ढूंढने उस जंगल में गए डरे सहमे हुए जंगल में प्रवेश करने लगे क्योंकि उस जंगल में खतरनाक जानवर रहते थे,भैंस को ढूंढते हुए लोग बीच जंगल में चले गए,जहां उन्होंने तालाब के कीचड़ से सने भैंस व उसके सिंग को देखा , यह नजारा देखकर लोग दंग रह गए ,कुछ दिनों बाद जिस मालगुजार का भैंसा गुम हो गया था,उसे मां मनका दाई ने स्वप्न में कहा कि मैं उसी तालाब में हू जहां तुमको तुम्हारा भैंसा मिला था तुम अपने कुल देवी के रूप में मेरी स्थापना कारों , मैं मनका दाई हू, मुझे यहां से निकाल कर मेरी स्थापना कर पूजा अर्चना करों, मेरी कीर्ति और यश,वैभव को भक्तों तक पहुंचाओं , माता के आदेश के बाद मालगुजार के द्वारा उस जंगल में जाकर तालाब से मिट्टी निकाल कर उस मिट्टी से मां मनका दाई की प्रतिमा का रूप दिया और उसकी पूजाअर्चना की,इसके बाद से खोखरा में मां मनका दाई का वास हो गया ,इसके बाद मां मनका दाई पूरे गांव में भ्रमण कर किसी भी प्रकार के अनैतिक दुर्घटना का अपनी अद्वितीय शक्ति से आकाशवाणी करती थी,यदि किसी व्यक्ति को समस्या आन पड़ती हैं तो मां के पावन चरण कमल में अपना मत्था टेक कर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं,मंदिर में हर वर्ष दोनो पक्ष के नवरात्रि में धूम रहती हैं, नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का तांता लगा रहता हैं, सभी भक्त अपनी मनोकामना लेकर मां के दरबार में पहुंचते हैं,जिन्हे मां पूर्ण कर देती हैं,

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