छत्तीसगढ़जांजगीरदेशधर्म

हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है…श्रद्धेय पं राधेश्याम शास्त्री





श्री राम को जीवन में अकल्पनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा… श्रद्धेय पं राधेश्याम शास्त्री

भारतभूमि के कण-कण में ईश्वर समाए हैं..श्रद्धेय पं राधेश्याम शास्त्री



जांजगीर चांपा। जिले के खोखरा धाराशिव मे राठौर परिवार द्वारा सात दिवसीय श्री मद भागवत कथा का आयोजन किया करया जा रहा है। जिसके कथा वाचक  पुटपुरा वाले पंडित राधेश्याम शास्त्री ने भागवत कथा के चौथे दिन कृष्ण जन्म की कथा से पहले राम जन्म की कथा पर प्रकश डालते हुए  कथा वाचक श्रद्धेय पं राधेश्याम शास्त्री ने कहा – भारतीय संस्कृति में कहा गया है – “हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है”।

भारतभूमि के कण-कण में ईश्वर समाए हैं। यहाँ की धूल भी चंदन है। हमारी संस्कृति-परम्पराओं ने हर बच्ची को देवी का स्थान दिया है। प्रत्येक बच्चे में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को गढ़ना भी सिखाया है। भगवान राम मर्यादापूर्ण जीवन के प्रतीक, भगवान राम विनम्रता, सदाचार और धैर्य के परम अवतार हैं। वह सभी के लिए, विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हैं। प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान को अपने छात्रों में जीवन-परिवर्तनकारी कौशल विकसित करते हुए उनमें ऐसे अद्भुत गुण विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। एक राजकुमार होने के उपरान्त, भगवान राम को जीवन में अकल्पनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हर स्थिति में अपने धर्म, नैतिक मूल्यों और नैतिकता को स्थिर रखा, तब भी जब चीजें वास्तव में कठिन हो गईं। वास्तव में कोई भी ऐसा जीवन जीने की कल्पना नहीं कर सकता है, लेकिन छात्र भगवान राम के जीवन दर्शन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। 

परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, आपको अपना आंतरिक संतुलन कभी नहीं छोड़ना चाहिए और उस मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए जो आपके और आपके परिवार के लिए आदर्श हो। मुझसे बड़ा कोई नहीं। कोई पदार्थ तो कभी नहीं। भौतिक साधन मेरी सुख-सुविधाओं के लिए हैं। मैं उनके वश में नहीं हो सकता। मुझसे बढ़कर कोई नहीं है। ना धन, ना संग्रह, ना साधन और अहंकार तो कभी नहीं। मैं नहीं होना एक सिद्धि है। मैं में धर्म, जाति, सम्प्रदाय, पुरुष, स्त्री भी नहीं है। मैं का ज्ञान आपको गुरू देंगे। वे बतायेंगे कि मैं का अर्थ क्या है? अध्यात्म की एक ही परिभाषा है – आपके स्वभाव तक जो आपको पहुँचा दे। ईश्वर ने किसी प्राणी को अभिमानी नहीं बनाया। जब आप स्वयं को अपने से भिन्न मानने लगते हैं तभी आप अभिमानी बन जाते हैं। भुने व कच्चे चने में एक अन्तर होता है। भूने हुए चने में अंकुरण की सम्भावना ना के बराबर है। वहीं कच्चे चने को अंकुरित होने का पूरा-पूरा अवसर मिलता है। ज्ञान व बचपन का सम्बन्ध भी कुछ ऐसा ही है। बच्चों को अच्छे संस्कार देंगे तो वे अच्छे नागरिक बनेंगे। अतः देश, धर्म, समाज और प्रकृति से प्रेम करना सिखायें। इस प्रकार आपके द्वारा दी गई सीख से ही उनके भविष्य का मार्ग बनेगा।वही इस कथा के मुख्य यजमान देवप्रसाद, राठौर
परमेश्वरी राठौर, दैनिक पूजन के आचर्य पं चन्द्र प्रकश पाण्डेय द्वारा प्रतिदिन पूजन सम्पन्न करया जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button