
बिलासपुर। राज्य सरकार की रामलला दर्शन योजना के खिलाफ लगी याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। अयोध्या के राम मंदिर में दर्शन के लिए राज्य सरकार के द्वारा चलाई जा रही रामलला दर्शन योजना को संविधान के धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन बताते हुए जनहित याचिका लगाई गई थी। जिसे चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने जनहित नहीं मानते हुए खारिज कर दिया है।

भाजपा पार्टी ने सरकार में आने से पहले अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के दर्शन के लिए अयोध्या धाम यात्रा हेतु रामलला दर्शन योजना चलाने की घोषणा की थी। 3 दिसंबर को राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद राज्य सरकार ने प्रदेशवासियों को अयोध्या धाम में रामलला के दर्शन करवाने हेतु 10 जनवरी 2024 को कैबिनेट में प्रस्ताव पास किया था। जिसमें राज्य के लोगों को राज्य सरकार अपने खर्चे पर ट्रेन सहित रहने खाने की सुविधा देकर अयोध्या धाम में दर्शन करवाने ले जाती है। इसके खिलाफ लखन सुबोध नामक व्यक्ति ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी। याचिका में बताया गया था कि कैबिनेट का निर्णय गलत है। एक धर्म विशेष के लोगों को सरकार द्वारा निशुल्क सरकारी खर्चे पर धार्मिक यात्रा करवाई जा रही है। यह संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है और एक धर्म विशेष को सरकार का संरक्षण है। इसलिए इस पर रोक लगाने की मांग याचिका में की गई थी।
राज्य सरकार के तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर ने इस पर जवाब पेश किया। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। राज्य सरकार ने अपने जवाब में बताया कि कैबिनेट की बैठक कर इसके लिए अधुसूचना प्रकाशित की गई थी। अधिसूचना में छत्तीसगढ़ के सभी यात्रियों के यात्रा करवाने की बात कही गई है, ना कि हिन्दू धर्म के लोगों की। इस यात्रा में प्रदेश के कमजोर तबके के सभी धर्मों के लोगों को यात्रा करवाई जाती है ना कि किसी धर्म विशेष के व्यक्ति को। हर धर्म का व्यक्ति इस योजना का लाभ उठाकर यात्रा कर सकता है।
दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद राज्य सरकार ने इसे धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं माना। अदालत में सरकार के अधिकार पर हस्तक्षेप से इनकार किया और इस याचिका को जनहित याचिका नहीं मानते हुए धार्मिक यात्रा नहीं होने के चलते खारिज कर दिया।