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जांजगीर-चांपा में नकली खाद का जाल, किसान बोले – प्रशासन और डीलर की मिलीभगत से बर्बाद हो रही खेती

जांजगीर-चांपा –  छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में नकली और मिलावटी खाद की खुली बिक्री ने किसानों को गहरे संकट में डाल दिया है। खेतों में खरीफ फसल की बुवाई के दौरान असली और नकली खाद की पहचान न कर पाने से किसान असमंजस में हैं। कई किसान बिना रासायनिक खाद डाले ही बुआई कर चुके हैं, तो कुछ जैविक खेती की ओर लौट रहे हैं।

बाजार में खुलेआम बिक रही नकली खाद, पर कार्रवाई नदारद

ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि नकली यूरिया, डीएपी और अन्य उर्वरक खुलेआम बिक रहे हैं। खाद के पैकेटों पर न कंपनी का नाम है, न उत्पादन तारीख और न ही गुणवत्ता का कोई प्रमाण। इसके बावजूद जिले में न तो छापेमारी हो रही है, न ही किसी डीलर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। इससे किसानों में यह आशंका गहराती जा रही है कि प्रशासन और निजी खाद कारोबारियों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा फल-फूल रहा है।

सहकारी समितियों से गायब सरकारी खाद, निजी कंपनियों की बाढ़

किसानों का कहना है कि जिले की अधिकांश सहकारी समितियों में इफको, इंफेल, ट्रपको और राजफैड जैसे सरकारी ब्रांड की खाद उपलब्ध ही नहीं है। जबकि निजी कंपनियों के उर्वरकों की बाजार में भरमार है – जिनकी न तो गुणवत्ता की गारंटी है और न ही इनकी कीमत पर नियंत्रण। इससे किसानों को मजबूरी में संदिग्ध उत्पाद खरीदने पड़ रहे हैं।

खाद नहीं, फिर भी शुरू की बुआई

मानसून समय पर आने से खेतों में खरीफ फसलों की बुवाई शुरू हो चुकी है, लेकिन खाद की अनुपलब्धता और नकली खाद के डर से अधिकांश किसानों ने सीमित संसाधनों में ही बुआई की है। कई किसान रासायनिक खाद की जगह गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट और नीम खली जैसे पारंपरिक विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं।

जांच के नाम पर खानापूर्ति, किसान सवालों के घेरे में छोड़ दिए गए

कृषि विभाग द्वारा निरीक्षण और सैंपल जांच के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। किसानों का कहना है कि दुकानों से केवल “चुनिंदा” नमूने लेकर कार्रवाई का दिखावा किया जाता है। असली दोषी खुलेआम बिक्री कर रहे हैं, लेकिन उन पर कोई शिकंजा नहीं कसा जाता। इससे किसानों को लगने लगा है कि इस पूरे खेल में विभागीय अधिकारियों और खाद कारोबारियों की मिलीभगत है।

नकली खाद से फसल और भविष्य दोनों खतरे में

बीते कुछ सीजन से लगातार मिलावटी खाद के कारण किसानों की फसल खराब हुई है, लेकिन उन्हें न तो मुआवजा मिला, न दोषियों को सजा। अब इस बार भी वही स्थिति बनती नजर आ रही है। किसान सवाल पूछ रहे हैं – जब जांच, लाइसेंस और समितियों का नेटवर्क है, तो फिर नकली खाद आखिर इतनी आसानी से बाजार में कैसे बिक रही है?

सरकार से की गई मांग: बने जांच आयोग, हो सख्त कार्रवाई

किसानों ने सरकार से मांग की है कि नकली खाद के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए जिले में उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित की जाए। साथ ही खाद निर्माण व वितरण से जुड़ी निजी कंपनियों और अधिकारियों के गठजोड़ की भी जांच कर कार्रवाई की जाए।

किसान पूछ रहे – क्या सरकार और अफसरों की मिलीभगत से चल रहा है नकली खाद का धंधा?

कांग्रेस द्वारा विधानसभा में उठाए गए मुद्दों के बाद भी जिले में नकली खाद की सप्लाई और बिक्री बेरोकटोक जारी है। किसान हैरान हैं कि सदन में सवाल उठने और मीडिया में लगातार खबरें आने के बाद भी प्रशासन की आंखें नहीं खुलीं। इससे यह आशंका और भी गहरी हो गई है कि कहीं इस पूरे खेल में ऊपर से नीचे तक की मिलीभगत तो नहीं?

कांग्रेस ने की थी उच्च स्तरीय जांच की मांग

सदन में विपक्ष ने मांग की थी कि प्रदेश सरकार एक उच्चस्तरीय समिति गठित करे जो नकली खाद के नेटवर्क, संबंधित अधिकारियों की भूमिका और कंपनियों की जवाबदेही तय करे। लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

क्या किसानों की आवाज़ सिर्फ़ चुनावी मुद्दा है?

कृषि आधारित छत्तीसगढ़ में किसानों की समस्याओं को लेकर बार-बार राजनीतिक बहस तो होती है, लेकिन जमीनी समाधान नहीं दिखता। कांग्रेस के सवालों के बावजूद अगर अधिकारी मौन हैं और नकली खाद का धंधा लगातार फल-फूल रहा है, तो यह लोकतंत्र और जवाबदेही दोनों पर बड़ा सवाल है।

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