छत्तीसगढ़

कोरबा का काला शुक्रवार : तीन मासूमों की जल समाधि, पुलिस परिवार पर टूटा ग़म का पहाड़ – सत्ता का चेहरा गायब ! तालाब की लहरों ने बुझा दिए चिराग, माताओं की सिसकियों में डूबा पूरा पुलिस महकमा – इंसानियत पर खड़े हुए सवाल

5 सितंबर 2025, दोपहर का वक्त… कोरबा पुलिस परिवार, कभी न भूल पाने वाला यह दिन अपनी गोद में तीन मासूमों की असमय मौत की कहानी लेकर आया। रिसदी तालाब की ठंडी लहरें तीन चिरागों को अपने साथ बहा ले गईं। पुलिस लाइन कॉलोनी के आंगन, जहाँ कभी बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं, अब मातम और चीखों से गूंज रहे हैं।

13 साल का आकाश लकड़ा, 12 साल का प्रिंस जगत और 9 साल का युवराज सिंह ठाकुर – तीनों अपने परिवारों की जान थे। जिन आंगनों में सपनों की नींव रखी गई थी, वहाँ आज सिर्फ रोने की आवाजें गूंज रही हैं। आकाश अपनी मां-बाप की इकलौती संतान था, सालों की मन्नतों और इलाज के बाद जन्मा। प्रिंस भी अकेला चिराग था। युवराज ने अभी जीवन की राह पकड़नी ही शुरू की थी। लेकिन किस्मत ने एक पल में तीनों को छीन लिया।

पुलिस महकमे का माहौल ऐसा कि सायरन की आवाज़ भी शोकगीत लग रही थी। एसपी सिद्धार्थ तिवारी समेत अफसर मौके पर पहुँचे, ढांढस बंधाया, लेकिन यह घाव इतना गहरा था कि कोई मरहम काम नहीं आया। साथी पुलिसकर्मी एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े रहे… सबकी आंखें नम थीं।

मंत्री लखनलाल देवांगन का दर्द भरा संदेश

इस त्रासदी पर शहर विधायक व मंत्री लखनलाल देवांगन शहर में मौजूद नहीं थे। लेकिन उन्होंने फोन पर पुलिस अधीक्षक और संबंधित अधिकारियों से बात कर अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने परिवारों के दुख को साझा करते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

महापौर संजू देवी राजपूत भी परिवारों के साथ

महापौर संजू देवी राजपूत जो खुद पुलिस परिवार से ऑटो है, उन्होंने भी इस घटना को बेहद पीड़ादायक बताया और नगर निगम की ओर से हर संभव सहयोग देने की बात कही। उन्होंने कहा कि नगर के लोग इस दुख की घड़ी में पुलिस परिवारों के साथ खड़े हैं।

लेकिन समाजसेवी संस्थाएं और राजनीतिक दल नदारद…

सबसे बड़ा सवाल यही उठता है – जब एक पुलिस परिवार पर इतना बड़ा संकट टूटा, तो बाकी राजनीतिक दलों और समाजसेवी संस्थाओं के लोग कहाँ थे ?
???? न कोई संगठन मौके पर पहुँचा,
???? न किसी ने परिवारों से मिलकर संवेदना जताई।

क्या संवेदनशीलता सिर्फ मंच और चुनावी रैलियों तक सीमित रह गई है ? क्या यह वही जनता नहीं है जिनके भरोसे नेता और संगठन खुद को समाजसेवा का ठेकेदार बताते हैं ?

अगर यही हादसा किसी बड़े राजनीतिक घराने में हुआ होता, तो फूलों के गुलदस्ते और कैमरों की भीड़ जुट जाती। लेकिन यहाँ? यहाँ तो सिर्फ खामोशी थी, माताओं की चीखें थीं और उन पिता की टूटी हुई आंखें, जिनकी गोद हमेशा के लिए खाली हो गई।

इंसानियत सत्ता के तराजू में तौल दी गई है…

पुलिसकर्मी वो लोग हैं, जो दिन-रात जनता और व्यवस्था के लिए डटे रहते हैं। और जब उनके घरों पर यह दुखों का पहाड़ टूटा, तो सत्ता के ठेकेदारों का दिल क्यों नहीं पसीजा ? क्या इंसानियत का भी अब राजनीतिक एजेंडा तय होने लगा है ?

मासूमों की चिर निद्रा और हमारी जिम्मेदारी

आज पूरा कोरबा जनमानस और मीडिया पुलिस परिवार के साथ खड़ा है। हर आंख नम है और हर दिल यही प्रार्थना कर रहा है कि ईश्वर इन परिवारों को इस असहनीय पीड़ा को सहने की शक्ति दे।

लेकिन यह हादसा सिर्फ सवाल नहीं है, एक चेतावनी भी है।
तालाबों और जलाशयों में हर साल मासूम डूबते हैं, और परिवार तबाह होते हैं। क्या अब समय नहीं आ गया कि हम सब मिलकर अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठाएँ ?


???? ग्राम यात्रा की अपील ????
तीन मासूमों की जान चली गई, अब और कोई माँ अपनी गोद यूँ सूनी न करे। प्रशासन को चाहिए कि हर तालाब और जलाशय पर सुरक्षा इंतज़ाम पुख़्ता करे। और हम सबकी जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को पानी के खतरों से सावधान करें।
हर बूंद ज़िंदगी है, पर वही बूंद कभी मौत भी बन सकती है।
सतर्क रहें… ताकि किसी और आंगन का चिराग बुझने न पाए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button