कोरबा। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने प्रदेश की भूपेश सरकार से जिले में वनभूमि पर काबिजों को वनभूमि का पट्टा प्रदान करने की मांग की है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य समिति के सदस्य सुखरंजन नंदी ने जारी बयान में कहा है कि चुनावी घोषणापत्र में वनभूमि पर काबिजों को पट्टा देने का वादा किया गया था लेकिन इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल अभी नहीं किया गया है जिसके कारण आज भी जिला के हजारों आदिवासी जो वनभूमि पर काबिज हैं, वे वनाधिकार पत्रक से वंचित हैं। वर्ष 2006 में वामपंथी पार्टियों के दवाब में तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने वनाधिकार कानून बनाया था लेकिन यह कानून प्रदेश में सही ढंग से लागू करने के प्रति राज्य की पूर्व भाजपा सरकार और अब कांग्रेस सरकार भी उदासीन है। इसके कारण जंगल की भूमि पर सैंकड़ों वर्षों से निवासरत आदिवासियों व अन्य परंपरागत निवासियों को इस कानून का लाभ  नहीं मिल पाया है। किसान नेता ने केंद्र की मोदी सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि अब भाजपा सरकार संसद में वन संरक्षण कानून में परिवर्तन कर वनभूमि को कार्पोरेट घरानों को सौंपने का काम किया है। अब निजी संस्थानों को दस हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर आसानी से चिडिय़ा घर,जंगल सफारी जैसे परियोजनाओं को पूरा कर पाएंगे और इसके लिए वन व पर्यावरण विभाग की कोई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। रेल लाइन व सडक़ निर्माण के लिए भी उक्त विभागों से अनुमति लेने की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है जिसका सीधा प्रभाव वनभूमि पर काबिज आदिवासियों पर पड़ेगा। अगर वनभूमि पर निवासरत लोगों के पास पट्टा नहीं होगा तो इन परियोजनाओं को अमल करने के लिए कबिजों को बिना उचित मुआवजा,पुनर्वास दिए ही उजाड़ दिया जाएगा। किसान सभा जिला में इस मुद्दे को लेकर आदिवासियों के बीच प्रचार अभियान संचालित करने के साथ ही वनभूमि के पट्टा हेतु आवेदन फार्म संबंधित विभाग को सौंपेगी।

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