कल भोग-भंडारे का आयोजन
कोरबा। रविशंकर नगर सेट पैलाटी स्कुल के समाने में राठौर परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिन ख्यातिलब्ध कथा वाचक श्री राहुल कृष्ण महाराज जी के श्रीमुख से भगवान कृष्ण की लीला और कृष्ण-सुदामा के बीच अकाट्य मित्रता का वर्णन करते हुए कथा पर विराम लगाया।
श्री राहुल कृष्ण महाराज जी के श्रीमुख से निकल रही भगवत कथा सुनने अंतिम दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटे और कृष्ण-सुदामा मित्रता का संदेश ग्रहण किया। राहुल कृष्ण जी ने संगीतमय कथा के माध्यम से बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने एक दरिद्र ब्राम्हण के अनाज के एक दाने का मोल चुकाया और सुदामा की दरिद्रता दूर कर उसे जीवन का वैभव प्रदान किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से भगवान श्री कृष्ण ने बचपन की मित्रता को सुदामा के चौथेपन में चुकाया।
राहुल कृष्ण महाराज जी ने कृष्ण-सुदामा चरित्र के माध्यम से बताया कि मित्रता हो तो ऐसी, जैसी कृष्ण और सुदामा की थी। उन्होंने कहा कि भगवान को भोग कैसे भी लगावो,मन में भाव पूर्ण होना चाहिए। सुदामा की पत्नी ने भगवान कृष्ण को अनाज का एक दाना खिलाया, उसी में भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए और सुदामा को जीवन का हर वैभव प्रदान किया। उन्होंने कहा कि जीवन में संघर्ष करना मत छोड़ो, इसका प्रतिफल आज नहीं तो कल सुखद भविष्य के रूप में अवश्य मिलेगा। मित्रता करना सरल है, लेकिन इसे निभाना कठिन है। सुख में न सही दुख में मित्रता की परीक्षा होती है और जो परीक्षा में पास हो जाता है, वही सच्चा मित्र होता है।
उन्होंने उपस्थितजनों को कथा श्रवण कराते हुए कहा कि बच्चों में संस्कार का बीज बोएं, क्योंकि शिक्षा संस्कार के बिना अधूरी है और संस्कारवान शिक्षित बच्चे ही समाज और राष्ट्र का भला कर सकते हैं। उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि प्यारे बच्चों! मित्रता सोच समझकर करो और उसे आजीवन निभावो। उन्होंने अंत में कहा कि सभी ग्रंथों का मूल है श्रीमद भागवत कथा और इसका श्रवण करने से जीवन में ज्ञान तो आता ही है, यह कथा जीवन की कार्यशैली को सनातन भी बनाती है। 24 दिसंबर से 31दिसंबर तक चलने वाली श्रीमद् भागवत कथा पर विराम लगने के बाद आचार्य श्री ने सभी को भोग भंडारे में आमंत्रित किया है। कल दोपहर 1.00 बजे ब्राम्हण भोज एवं भोग भंडारा का आयोजन सेट पैलाटी स्कुल के समाने में किया गया है।वही क्रार्यक्रम मे लखन लाल देवागनं कैबिनेट मंत्री छत्तीसगढ़ सरकार व्दारा इस कथा के आयोजन पहुचकरं आशीर्वाद लिया वही राठौर परिवार के मुख्य यजं मान के रुप मे तुलाराम राठौर व श्रीमती लक्ष्मी बाई तथा कृष्ण राठौर व श्रीमती रमा राठौर सपत्निक सहित अपनी अहम भूमिका निभाई।