मार्कण्डेय मिश्रा की रिपोर्ट
कोरबा – मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में आंकड़ो का ऐसा खेला हुआ जिसको जानकर आप दंग रह जाएंगे। सीएमएचओ ऑफिस से पहली बार बायो मेडिकल वेस्ट के लिए गार्बेज बैग का आर्डर किया गया। लेकिन जो बैग का रेट आया उसको जानकर आप हैरान हो जाएंगे 1320 रुपये एक पैकेट का रेट , जबकि यही बैग आपको बाज़ार में आपको 180 रुपये में मिल जाएगा। यहां रेट को एडजेस्ट करने में डीपीएम अशरफ अंसारी ने डैम मंजू भगत और वेंडर सुश्रुता हॉस्पिटल सॉल्यूशन के साथ मिलकर अलग-अलग रंग के प्लास्टिक के लिए अलग अलग रेट डाला मतलब पीला, लाल, और नीले प्लास्टिक बैग के लिए 377 रुपये का रेट डाला जबकि यही प्लास्टिक बाज़ार में 150 रुपये से 190 रुपये तक मिल जाता है तीनो रंगों के एक साथ मतलब एक सेट गार्बेज बैग के लिए 1131 रुपये का बिल बनाया गया बड़ी ही होशियारी से रेट में 63 रुपये की जीएसटी भी जोड़ दी गई जबकि टेंडर में जीएसटी सहित रेट मांगे गए थे इस लिहाज से 180 रुपये के प्लास्टिक बैग को 440 रुपये में खरीद लिया गया। एक बैग में करीब 300 प्लास्टिक होते है और 5680 पीस को खरीदा गया मतलब 25 लाख 27 हजार 600 रुपये का केवल बायो मेडिकल वेस्ट गार्बेज बैग खरीदा गया है। टेंडर रेट से 3 लाख 85 हजार 567 रुपये अधिक के रेट पर सीएमएचओ डॉ एस एन केशरी ने डैम के प्रस्तुत बिल पर साइन करते पास भी कर दिया।
जबकि यही खरीदी हमारे पास मौजूद बाजार के इस्टीमेट के आधार पर सभी करो सहित 10 लाख से भी कम में हो सकती थी। ऐसे में पूरे मामले की जांच होनी चाहिए कि आवश्यकता से अधिक ऐसे बैग क्यों खरीदी कि गई इसमें डीपीएम, डैम और सीएमएचओ का क्या स्वार्थ था। अधिक भुगतान कैसे किया गया, टेंडर रांची के फर्म को क्यों दिया गया जबकि ये सामान ई मानक, सीएसआईडीसी में कम दर पर छत्तीसगढ़ से ही मिल जाती। ऐसे में भ्रष्टाचार का जो आरोप लग रहा है उसमें बड़ी सच्चाई लगती है क्योंकि जो चीज़ एक पीस बजाए से खरीदने में 180 में मिल सकती है तो उसके लिए 5500 पीस आर्डर करने पर 440 में कैसे मिली ऐसा क्या खास था उस प्लास्टिक बैग में जबकि कोरबा के बड़े से बड़े अस्पताल वाले जहां हर रोज कइयों ऑपरेशन होते है, दर्जनों मरीज भर्ती होते है वहां 160 रुपये वाले बायो मेडिकल वेस्ट गार्बेज बैग का इस्तेमाल करते है। यहां सरकारी अस्पतालों की स्थिति आपको बताने की जरूरत नहीं है।