आशुतोष शर्मा / नई दिल्लीः-
देश की सियासत पर गहरी छाप छोड़ने वाले दक्षिण भारत के दिग्गज नेता एम करुणानिधि का निधन हो गया है. वो लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे और 28 जुलाई से कावेरी अस्पताल में भर्ती थे. एम करुणानिधि यूरिनिरी इंफेक्शन से पीड़ित थे. पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि उनके निधन से वो बेहद दुखी हैं.

सियासी सफर
सबसे पहले करुणानिधि 1957 में विधानसभा चुनाव में चुने गए थे जिस समय जवाहरलाल लाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे. उनकी खास बात ये है कि वो अपने जीवन में कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे. राजनीति में 61 साल तक सक्रिय रहने वाले करुणानिधि 13 बार राज्य के एमएलए रहे हैं और एक बार तमिलाडु के एमएलसी भी रह चुके हैं. 14 साल की उम्र में करुणानिधि पेरियार के स्वाभिमान अभियान से छात्र कार्यकर्ता के रूप में जुड़े थे.

साल 1957 में एम करुणानिधि सबसे पहले कुलीथलाई विधानसभा से चुने गए, इसके बाद 1962 में थंजावुर विधानसभा से चुने गए. साल 1967 और 1971 में वो सैडापेट विधानसभा से निर्वाचित हुए. इसके बाद साल 1977 और 1980 में वो अन्ना नगर विधानसभा से जीते.

साल 1984 में करुणानिधि ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा. श्रीलंका में तमिलों के ऊपर हुए हमलों के विरोध में उन्होंने 1983 में एमएलए पद से इस्तीफा दे दिया और वो विधान परिषद के सदस्य रहे. 1989 और 1999 में वो चेन्नई की हार्बर विधानसभा से चुनाव जीते. इसके बाद साल 1996, 2001 और 2006 में वो चेपक विधानसभा क्षेत्र से जीतकर आए. वहींसाल 2011 और 2016 में वो थिरुवरूर विधानसभा से जीते.

शुरुआती जीवन
मुथुवेल करुणानिधि का जन्म साल 1924 में थंजावुर (अब नागापट्टीनम) में हुआ था और 3 जून को उन्होंने अपने जीवन के 95 साल पूरे किए थे. एम करुणानिधि को कलैगनार के तौर पर जाना जाता था जिसका अर्थ है कला का ज्ञाता. तमिलनाडु की राजनीति में सबसे बड़े नामों में से एक करुणानिधि 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.

करुणानिधि के राजनीति करियर की शुरुआत उनके छात्र जीवन में ही शुरू हो गई थी और वो उस समय वो चर्चा में आए जब साल 1937 में हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य भाषा के रूप में लागू किया गया जिसके विरोध में पेरियार ने युवा तमिल छात्रों को सड़कों पर विरोध के लिए उतार दिया. इसमें करुणानिधि शामिल हुए उन्होंने नुक्कड़ नाटकों, भाषणों और हाथ से लिखी हुई मैगजीन के जरिए भारी संख्या में छात्रों को अपने साथ जोड़ा. इसके बाद करुणानिधि कोयंबटूर चले गए जहां वो स्क्रिप्ट राइटिंग करने लगे और पेशेवर थियेटर ग्रुप के साथ जुड़ गए. वहीं वो द्रविड़ कड़गम पार्टी की मैगजीन कुडियारासु के एडिटर बनाए गए.

आजादी के बाद जब साल 1949 में पेरियार का आंदोलन दो भागों में बंट गया तब उन्होंने अन्नादुरई के साथ मिलकर डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) की स्थापना में सहयोग दिया और इसके पहले कोषाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त हुए

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