कोरबा। ग्राम दादर में ऐतिहासिक रथयात्रा  20 जून से प्रारंभ हुई और 7 दिन बाद भगवान के घर वापसी के साथ रथयात्रा का समापन हुआ। बालको नगर में उत्कल समाज द्वारा आयोजित रथयात्रा भी वर्षो से निरंतर हो रही है। बता दें कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा भक्तों को दर्शन देते हुए अपनी मौसी के घर जाते हैं, जो पास में ही गुंडिचा मंदिर है। इसके बाद आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को वहां से अपने श्री मंदिर वापस लौटते हैं। इस रथ यात्रा को ‘बाहुड़ा यात्रा’ के नाम से जानते हैं। इस दौरान कई तरह की परंपराओं को निभाया जाता है। इसके साथ ही जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन हो जाता है। इसके बाद एक और अनोखी परंपरा निभाई जाती है जिसमें श्री जगन्नाथ मां लक्ष्मी को मनाते हैं। नेता प्रतिपक्ष हितानंद अग्रवाल ने कहा कि जगन्नाथ यात्रा आरंभ होने के साथ श्रीनाथ, भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी गुंडिचा मंदिर चले जाते हैं। ऐसे में जगन्नाथ मंदिर का आसन खाली रहता है। इन दिनों में भगवान जगन्नाथ के खास दोस्त नील माधव आसन के सामने बैठते हैं। सामान्य दिनों में वह नजर नहीं आते हैं, क्योंकि वह जगन्नाथ जी के आसन के पीछे बैठे होते है। इसके बाद जब रथ यात्रा के बाद जगन्नाथ जी वापस अपने आसन में आते हैं, तो नील माधव मां लक्ष्मी के बगल में विराजमान हो जाते हैं।

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