सरगुजा (सेंट्रल छत्तीसगढ़) शांतनु सिंह : संभाग के गोदना आर्ट का वर्तमान में कोई मुकाबला नहीं है. आज का आधुनिक टैटू इसी पुरानी कला का नया अंदाज है. छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड इस कला से जुड़े कलाकारों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने में लगा हुआ है. सरगुजा के गोदना आर्ट को देश से लेकर विदेशों तक पहुंचाने की कवायद तेज हो गई है. जल्द ही यहां के गोदना आर्ट से बने विभिन्न सामान ई मार्केटिंग के जरिए ऑनलाइन उपलब्ध होंगे, जिससे हजारों महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल सकेगा.

गोदना को मिला नया रूप : छत्तीसगढ़ जनजातीय बाहुल्य राज्य है. सरगुजा और बस्तर अंचल की जनजातियों में गोदना अधिक देखने को मिलता है. वैसे हिन्दू धर्म में लगभग सभी जातियों में गोदना प्रथा आदिकाल से प्रचलित है. यह प्रथा धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़ी हुई है. छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ कला का आज के समय में कोई मुकाबला नहीं है. आज का आधुनिक टैटू इसी पुरानी कला का नया अंदाज है. छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड ने इस कला से जुड़े कलाकारों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराया है. सरगुजा के गोदना आर्ट की पहचान अब विदेशों तक हो गई है. गोदना कला का प्रचार कर कलाकारों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने सहित उत्सव और मेलों में प्रतिनिधित्व करने का मौका भी दिया जा रहा है.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

गोदना कला निखारने महिलाओं को दी जा रही खास ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड के मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल्स की योजना इंटिग्रेटेड डिजाइन डेवलपमेंट के तहत महिलाओं को गोदना कला की ट्रेनिंग भी दी जा रही है, ताकि महिलाएं अपनी इस कला को और भी निखार सकें. ट्रेनिंग खत्म होने के 10 दिनों के बाद डायरेक्ट मार्केट टेस्ट के लिए महिलाओं के द्वारा तैयार किए गए गोदना शिल्प के कपड़ों को मार्केट में भी उतारने की तैयारी है. जिससे महिलाओं को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान होंगे.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

कपड़े में गोदना आर्ट

पुराने जमाने में आदिवासी तबके के लोग अपने पूरे शरीर में गोदना गुदवाते थे, लेकिन अब इस कला को कपड़े पर उतारा जा रहा है. साड़ियों और कपड़े पर बनने वाली गोदना कला पहले काफी सीमित थी, घर के उपयोग में आने वाली चीजों सहित अपने पहनने के कपड़ों पर गोदना कला का उपयोग होता था, जो धीरे-धारे लुप्त होती जा रही थी. इसी कला को संजोकर रखने छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड ने पहल की. इससे न सिर्फ इस कला का बचाया जा सकेगा, बल्कि इससे जुड़े लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

गोदना कला में सुधार की ट्रेनिंग

गांव की महिलाओं को गोदना की ट्रेनिंग छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड के द्वारा 2011 में दी गई थी. ट्रेनिंग के बाद महिलाएं गोदना शिल्प की साड़ी, सूट, बेडशीट तैयार करती थीं. महिलाओं को दीवार पर गोदना पेंटिंग के लिए भी बुलाया जाता है. महिलाएं गोदना शिल्प से तैयार कपड़ों को प्रदर्शनी में स्टॉल लगाकर बेचती भी थीं, लेकिन अब महिलाओं को गोदना में तकनीकी सुधार करने के लिए 3 महीने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं, ताकि उनका आर्ट और ज्यादा फाइन हो. ट्रेनिंग के बाद महिलाओं का गोदना कला में सुधार तो होगा ही, साथ ही देश-विदेश के बाजारों में बेहतर गोदना शिल्प के कपड़े भी उपलब्ध होंगे और इन कपड़ों की डिमांड भी बढ़ेगी.

गोदना आर्ट को बचाने के साथ महिलाओं को रोजगार

छत्तीसगढ़ से गोदना शिल्प की लुप्त होती कला को बचाने और महिलाओं की गोदना की कला को निखारने के लिए छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड की ये योजना इन महिलाओं के लिए वरदान साबित होगी. महिलाओं को रोजगार के नए अवसर तो मिलेंगे ही, इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की गोदना कला को देश-विदेश में एक नया आयाम भी मिलेगा. इसके लिए हस्त शिल्प बोर्ड के अलावा जन शिक्षण संस्थान भी प्रशिक्षण के कार्यक्रम चला रहा है.

गोदना आर्ट

पुराने समय में लोग अपनी सुंदरता को निखारने के लिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों में गोदना गुदवाते थे. जिस तरह महिला-पुरुष गहनों से श्रृंगार करती हैं, वैसे ही वे गोदने से भी खुद को सजाते थे. धीरे-धीरे यह शौक धार्मिक मान्यता का रूप लेता चला गया. एक समय ऐसा भी आ गया जब किसी घर में विवाह के बाद नई बहू घर आती थी, तो उसके शरीर में गोदना होना अनिवार्य होता था. ऐसा नहीं होने पर उसे घर के कुल देवता के कमरे में प्रवेश वर्जित होता था. यहां तक कि बिना गोदना की बहू के हाथ का पानी भी लोग नहीं पीते थे. बहरहाल वक्त के साथ लोगों की सोच बदली और गोदना का चलन इंसानी शरीर पर लगभग समाप्ति की ओर है. इसके अलावा शरीर पर गोदना के कई साइंटिफिक दुष्प्रभाव भी सामने आए हैं. कई बीमारियों सहित इंफेक्शन के खतरे भी हैं, लिहाजा डॉक्टर एहतियात बरतने की सलाह देते हैं.

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