कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हो रही धांधली का असली चेहरा सामने आया, फर्जी टेंडर के जरिए चहेते को किया जा रहा उपकृत – कैसे हुआ झोल और कमीशन का खेल, जानिए पूरी दास्तान
कोरबा : स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल में इस समय भ्रष्टाचार का ऐसा गंदा खेल खेला जा रहा है, जिसे सुनकर किसी का भी सिर शर्म से झुक जाए। अस्पताल में हो रही कमीशनखोरी और फर्जी टेंडर प्रक्रिया ने सरकारी धन की खुलेआम लूट मचा रखी है। जहां एक ओर लोगों को सस्ते, बेहतर और बिजली बचाने वाले उत्पादों की आवश्यकता है, वहीं अस्पताल प्रशासन ने अपने चहेते को फायदा देने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाई और पूरी प्रक्रिया को फिक्स कर दिया। इससे पहले ही आपने जाना था कि कैसे लोग बिना नौकरी किए पूरी तनख्वाह पा रहे है और मरीजों की जान को आफत में डाल रहे है अब उनको क्यों संरक्षण दिया जा रहा है उसकी दास्तान जानिए…
20 AC के लिए निकाले गए फर्जी टेंडर – नियमों की खुली धज्जियां
हाल ही में मेडिकल कॉलेज अस्पताल ने GeM पोर्टल के माध्यम से 20 एयर कंडीशन (AC) खरीदने के लिए टेंडर निकाला था। इस टेंडर में अस्पताल के प्रबंधन ने पूरी तरह से अपनी चहेती कंपनी को फायदा पहुंचाने की साजिश रची। अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. गोपाल कंवर और शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ. राकेश वर्मा के बीच मिलीभगत से ये टेंडर पूरी तरह से फिक्स था। दरअसल, टेंडर की शर्तों में ऐसा खेल किया गया कि केवल एक विशेष कंपनी को फायदा पहुंच सके।
Non-Inverter AC की शर्त – केवल एक कंपनी को लाभ
जब बाजार में 2 टन का इन्वर्टर AC ₹50,000 में उपलब्ध है, जो बिजली बचाने में सक्षम है, तो सवाल उठता है – Non-Inverter AC की शर्त क्यों डाली गई? दरअसल, Voltas ही एकमात्र कंपनी थी, जो Non-Inverter AC का उत्पादन कर रही थी। बाकी सभी कंपनियों ने इसे सालों पहले बंद कर दिया था। इस विशेष शर्त को Voltas के लिए रखा गया, जिससे सुप्रीम इलेक्ट्रिकल प्रोडक्ट्स को फायदा पहुंचे।
EMD का नियम उल्लंघन – सिर्फ एक फर्म को फायदा
कंपनियों ने EMD (Earnest Money Deposit) जमा करने के लिए GeM पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन किया था। लेकिन सुप्रीम इलेक्ट्रिकल प्रोडक्ट्स ने ऑफलाइन EMD जमा किया, जो साफ तौर पर नियमों का उल्लंघन था। इसके बावजूद, प्रबंधन ने बाकियों को टेक्निकल रूप से डिसक्वालिफाई कर दिया और सिर्फ सुप्रीम इलेक्ट्रिकल को फायदा दिया, जबकि छत्तीसगढ़ भंडार क्रय नियम 2002 (संसोधित 2022) नियमानुसार पहली बार निकाले गए निविदा में कम से कम 3 कंपनियों का तकनीकी रूप से योग्य होना अनिवार्य था। उसके बाद ही फाइनेंशियल बिड खोला जाता जिसमें प्रतिस्पर्धा में बाद टेंडर फाइनल होता। लेकिन पहली बार निकली इस निविदा में एकमात्र टेक्निकली क्वालीफाई हुई रायपुर की फर्म को आर्डर दे दिया गया। जबकि गुजरात समेत कई इलाकों से अन्य फर्म ने भागीदारी की थी। पहले तो टेंडर खोलने की आख़री तारीख 31 मार्च रात 08.30 बजे रखी गई थी, अब इस रात को कौन सा ऑफिस खुलता है यह तो डॉ. गोपाल कंवर ही जाने।
कमीशन का खेल – सरकारी खजाने की लूट
सूत्रों का कहना है कि इस पूरे खेल में कमीशन का रेट पहले से तय था। हर AC के प्रति यूनिट पर मोटा कमीशन लिया गया है। EMD से लेकर, टेंडर शर्तों तक सब कुछ पहले से तय था, ताकि सुप्रीम इलेक्ट्रिकल प्रोडक्ट्स को काम मिल सके और इसके बदले अधिकारियों को मोटा कमीशन मिल सके।
सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ – Non-Inverter AC की ख़रीद का बड़ा नुकसान
Non-Inverter AC, Inverter AC की तुलना में 40-50% ज्यादा बिजली खपत करता है। इसका मतलब है कि हर महीने अस्पताल का बिजली का खर्च कई गुना बढ़ जाएगा। इसके अलावा, Non-Inverter AC की कीमत भी ज्यादा है, यानी सरकार को अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा। यह पूरी प्रक्रिया सरकारी खजाने पर सीधे नुकसान का कारण बनेगी।
क्या कार्रवाई होगी? – लोगों के सवाल और सरकार का फेलियर
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हाल ही में भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की चेतावनी दी थी, लेकिन अब तक किसी भी कार्रवाई की कोई खबर नहीं है। डॉ. गोपाल कंवर और डॉ. राकेश वर्मा के खिलाफ अब तक कोई भी जांच शुरू नहीं की गई है, जो इस पूरे खेल के मुख्य खिलाड़ी हैं।
जनता पूछ सवाल रही है :
- क्या स्वास्थ्य विभाग इस घोटाले की जांच करेगा?
- क्या डॉ. गोपाल कंवर और डॉ. राकेश वर्मा पर कार्रवाई की जाएगी?
- क्या इस तरह का कमीशन का खेल बिना किसी रुकावट के चलता रहेगा ?
होगा पूरा खुलासा, यह तो केवल है शुरुवात
यह केवल एक शुरुआत है। अस्पताल में व्याप्त भ्रष्टाचार टेंडर प्रक्रिया के फाइलों, सेटिंग नेटवर्क, और इस खेल में शामिल सभी लोगों का खुलासा करेंगे। कौन लोग इसमें शामिल हैं और किसने किसे फायदा पहुंचाया – यह सब जानिए हमारी अगली रिपोर्ट में।