रायपुर (सेंट्रल छत्तीसगढ़) साकेत वर्मा : शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना का दिन है. मां कुष्मांडा को ब्रह्मांड की देवी माना जाता है,.सौरमंडल की अधिष्ठात्री देवी मां कुष्मांडा ही हैं. मां कुष्मांडा का दिव्य रूप 10 भुजाओं वाला है. उनका ये रूप दसों दिशाओं को आलोकित करता है. कहा जाता है कि देवी की मुस्कान से सृष्टि की रचना हुई. मां का ये रूप पूरे ब्रह्मांड में शक्तियों को जागृत करने वाला है.
करें इस मंत्र का जाप
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
मां कुष्मांडा की हैं आठ भुजाएं
माता कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. माता कुष्मांडा अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. माता के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा विराजमान है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप की माला होती है. माता का वाहन सिंह है. देवी को कुम्हड़े की बलि चढ़ाई जाती है. संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांडा कहते हैं, इसलिए भी माता को कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है.
मान्यता है कि जब असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो रहे थे, तब देवी जन संताप के नाश के लिए कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं. मां भगवती का यह स्वरूप भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है. देवी स्वरूप के पूजन में ‘अर्ध मात्रा चेतन नित्या यानी चार्य विशेषक त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा’ मंत्र का विशेष महत्व है.
माता का भक्तों पर प्रभाव
माता की उपासना से भक्तों के सारे रोग-शोक मिट जाते हैं. माता की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. मां कुष्मांडा सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली माता हैं. अगर इंसान सच्चे मन से माता रानी की सेवा करता है, तो फिर उसे आसानी से परम पद की प्राप्ति होती है. माता की पूजा-आराधना करने से तप, बल, ज्ञान और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. माता कुष्मांडा की पूजा करने से साधकों को उचित फल की प्राप्ति होती है.