कोरबा। कोरबा शहर के भीतर जहां कि महज एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर सिटी कोतवाली स्थापित है, फिर भी रेत की चोरी बदस्तूर जारी है। खनिज विभाग ने रेत चोरों को रोकने के लिए घाट के प्रवेश द्वार पर गड्ढा खुदवा दिया लेकिन इसे पाट कर फिर से चोरी शुरू कर दी गई। यह संज्ञान में आते ही खनिज निरीक्षक ने गड्ढे को गहरा कराने के साथ ही दूसरे मार्ग को भी अवरुद्ध कराया है।
मंगलवार को मोतीसागर पारा रेत घाट जो कि वैधानिक तौर पर बंद है लेकिन अघोषित तौर पर यहां से रेत निकाली और बेची जा रही है, यहां खनिज अमला फिर से नजर आया। दरअसल यहां से बढ़ती रेत चोरी और इसके लिए यहां निर्मित कब्रों और दफन शवों को भी क्षत-विक्षत करने से उपजे आक्रोश के बाद कोतवाली पुलिस ने सज्जाद खान सहित 11 लोगों के विरुद्ध धारा 297 के तहत अपराध दर्ज कर लिया। दूसरी ओर खनिज अधिकारी प्रमोद कुमार नायक ने खनिज निरीक्षक जितेन्द्र चंद्राकर व अमले को भेजकर खदान के आंतरिक प्रवेश मार्गों पर जेसीबी के जरिए गड्ढा खुदवाया। चूंकि रेत चोरों ने घाट के मुख्य प्रवेश द्वार पर लगा बेरियर तोड़ दिया है इसलिए यहां पर भी गड्ढा खुदवा दिया गया था। 22 दिसंबर को गड्ढे खुदवाने के कुछ दिन बाद रेत चोर शांत रहे लेकिन फिर से पाट कर सोमवार से चोरी शुरू कर दी गई। यहां से आगे नहर के बगल से रेत घाट की ओर जाने वाले दूसरे रास्ते का चोरों ने उपयोग शुरू किया और ट्रैक्टर पर ट्रैक्टर निकलने लगे। खनिज अमले ने आज इस रास्ते पर भी गड्ढा खुदवाया वहीं मुख्य प्रवेश द्वार के गड्ढे को और गहरा करवाया।
0 रेत चोरों का बना सिंडीकेट, कानून का भय नहीं
जिस तरह से रेत चोर अपना सिंडीकेट बनाकर काम कर रहे हैं, उससे इतना तो तय है कि इन्हें कानून का भय नहीं है। सोमवार की रात 9 बजे के बाद से आज तड़के तक ट्रैक्टरों में रेत का परिवहन शहर के भीतर से होता रहा जबकि शहर क्षेत्र में मोतीसागर पारा हो या गेरवाघाट, इसके संचालन की स्वीकृति नहीं हुई है। सूत्र बताते हैं कि कुछ ट्रैक्टर वाले मिलकर सिंडीकेट बतौर रेत के अवैध दोहन और परिवहन का काम कर रहे हैं। यह संभव नहीं कि पुलिस के मुखबिर इन लोगों से अंजान हों लेकिन दूसरी ओर खनिज संसाधन की चोरी होने के साथ ही निर्माण कार्यों में चोरी की रेत खपाए जाने के मामले में खनिज विभाग भी अपना तंत्र सक्रिय नहीं कर पा रहा है। राजस्व अमला भी छापामार कार्यवाही के मामले में अपेक्षानुरूप सुस्त है। नदी से रेत का अवैध दोहन के मामलों में पर्यावरण संरक्षण विभाग की भी भूमिका संदिग्ध कही जा रही है। विभाग का मैदानी अमला हो या अधिकारी, वे नदियों खासकर रेत से जुड़े नदी का जमीनी मुआयना नहीं कर रहे हैं जिसके कारण नदियों के अस्तित्व पर खतरा भी उत्पन्न होता जा रहा है।