कोरबा( दीपक शर्मा ) – : जिले के कप्तान की आंख में धूल झोंकने से भी संकोच नहीं
कोरबा जिले में कबाड़ का कारोबार फिर से सिर उठाने लगा है, यह और बात है की यह कार्य सभी दुकानदार ना कर चुनिंदा लोग तगड़ी सेटिंग और पुलिस महकमे के कुछ जयचंदों की सरपरस्ती में धड़ल्ले से कर रहे हैं। कहने को तो कोरबा जिले में कबाड़ के कारोबार पर बंदिश लगी हुई है, फलस्वरूप जो कबाड़ व्यवसाई पुलिस प्रशासन के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं, उनके दुकानों में पड़ा कबाड़ जंक लग रहा है और उनके कबाड़ दुकान में काम करने से दो वक्त की रोटी प्राप्त कर रहे लोगों को भी रोजगार के दूसरे साधन तलाशने पड़े हैं। अधिकांश ने निर्देश का पालन कर दुकानें बंद रखी हैं तो दूसरी तरफ चुनिंदा कबाड़ी अपना काम इस कथित तौर की कठोर बंदिश के बीच भी बड़ी दिलेरी से चला रहे हैं। ऐसे में दुकान बंद किये कबाड़ियों का सवाल भी जायज लगता है कि साहब, पैसा वो भी दे रहे हैं और हम भी देते रहे हैं तो नियम और बंदिश सिर्फ हमीं पर क्यों?
दर्री में पहले 1000000 का कबाड़, फिर कटघोरा में कबाड़ लेकर जा रहे ट्रक की घेराबंदी कर पकड़ने की घटना, इसके बाद कोरबा- पंतोरा मार्ग में एक ट्रक और छोटा हाथी में कबाड़ का पकड़ा जाना, यह सभी इस बात के प्रमाण हैं कि जिले में कबाड़ का कारोबार चल रहा है। भले ही अधिकारी बंदिश का दावा करते हों लेकिन हकीकत इससे काफी अलग है। कुछ दिन पहले गेवरा बस्ती के कबाड़ी जफर मेमन को पकड़ा गया, उसका पिता गेवरा बस्ती में बेटे को दुकान थमा कर पंतोरा में जंगल के भीतर गोदाम बना कर कोरबा जिले से ही निकलने वाले चोरी के कबाड़ को मंगाकर और फिर चांपा, बिलासपुर या रायपुर ले जाकर खपा रहा है। सहज ही समझा जा सकता है कि आखिर कोई शख्स पंतोरा जैसे ग्रामीण इलाके में कबाड़ की दुकान क्यों खोलेगा जहां पर इसका कोई स्कोप ही नहीं है। यह बात ऐसी भी नहीं है कि अधिकारियों को समझ ना आती हो किंतु कई बार समझ कर अंजान बने रहने में ही भलाई समझी जाती है। पिछले दिनों जब जफर मेमन पकड़ाया तब ही स्पष्ट हो गया कि उसका पिता इकबाल मेमन कोरबा व जांजगीर जिले की सीमा में रहकर दुकान खोले हुए हैं और यहीं का कबाड़ वहां ले जाया जाता है तो उसके दुकान को सील तक नहीं किया गया। खबर है कि दो-चार दिन थमने के बाद इकबाल फिर से सक्रिय हो गया है। सर्वमंगला पुलिस चौकी क्षेत्र व कुसमुंडा थाना के अंतर्गत बरमपुर में राजू कबाड़ी इस इकबाल का खास बना है जो चोरी के कबाड़ सामानों को खरीदकर विभिन्न माध्यमों से उस तक पहुंचाता है। यह संभव ही नहीं कि छोटे से लेकर बड़े कबाड़ी के बारे में पुलिस विभाग के पुराने और कुछ मशहूर किस्म के अधिकारियों-कर्मचारियों ( जो पिछले वर्ष कटघोरा-पाली मार्ग में पकड़े गए अवैध कबाड़ व कोयला भरे ट्रक को छुड़वाने के लिए तत्कालिक प्रशिक्षु डीएसपी पर दबाव बनाते बनाते थक गया था जैसे लोगों )को इसकी जानकारी ना हो, बावजूद इसके आखिर ऐसी कौन सी वजह हो जाती है कि इन कबाड़ियों के ठिकानों को सील करने, इन पर पूरी तरह से लगाम लगाने में हीला हवाला किया जाता है। पूर्व में पकड़े गए कबाड़ के मामलों में से किसी भी प्रकरण में तह तक जाकर कार्यवाही देखने और सुनने को आज तक नहीं मिली। 1000000 का कबाड़ हो या कटघोरा में स्थानीय लोगों द्वारा दौड़ा कर पकड़ा गया कबाड़ का मामला, न जाने क्यों इन वाहनों के मालिक नहीं मिलते, चालक का पता नहीं चलता और स्थानीय स्तर पर यह कबाड़ कब और किसके द्वारा इकट्ठा किया गया, किसके द्वारा किसके माध्यम से बेचा गया, कहां से लाया गया, कहां-कहां से चुराया गया, इसकी कोई विवेचना हो ही नहीं पाती या होती है तो उसे बताने में परहेज करने की वजह भी समझ से परे है। आश्चर्य तो तब होता है जब विभाग के बड़े अधिकारी के निर्देश पर टीम दबिश देने निकलती है और टीम के पहुंचने से पहले सामने वाले को इसकी खबर मिल जाती है। ऐसे जयचंद भी कबाड़ के इस अवैध कारोबार के फलने-फूलने में खाद का काम कर रहे हैं।
कबाड़ियों के दुकानों पर जब बंदिश नहीं लगी थी तब उनकी दुकानों पर सुबह-शाम बदल-बदल कर वर्दीधारी लोगों को हाजिरी लगाते और जेब गर्म कर लौटते देखा जाता रहा। अब दुकानें बंद होने के बाद कुछ खास सिपहसालार बने लोग गाड़ियां निकलवा कर यह काम कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो जिले से हर दो-तीन दिन की आड़ में एक से दो ट्रक कबाड़ किसी न किसी तरह से बाहर निकल रहा है।
अब आज ही का मामला लें जब सुराकछार के स्टोर रूम से मशीनरी के सामानों को चोरी करने का प्रयास किया गया जिसमें 3 लोगों के पकड़ाने की खबर है। दो दिन पहले बालको पुलिस ने ताम्बा तार के साथ एक व्यक्ति को पकड़ा।अब भला चोरी किया हुआ या चोरों से खरीदा हुआ यह लोहा-ताम्बा कहीं खपाते जरूर, पर कहाँ? वहीं पर जहां चोरी का व अवैध कबाड़ खपता है। कबाड़ खप रहा है इसलिए चोरी होकर बिक रहा है तो फिर बंदिश कैसी…?
पिछले ही महीने कटघोरा से निकलकर पाली होते हुए बिलासपुर की ओर रवाना एक कबाड़ भरे ट्रक को रास्ते में रोका गया और 80000 में मामला सेट कर उसे जाने दे दिया गया। आखिर ऐसा हो भी क्यों ना, क्योंकि कप्तान को अंधेरे में रखकर जिले में कुछ चुनिंदा लोग अपनी वर्दी का बेजा इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं। कोयले की दलाली में भी इनके हाथ काले हैं तो कुछ धंधों में भी इन्होंने अपने शेयर तय कर रखे हैं। इन्हें इस बात का भी भय नहीं कि जब स्वयं रेंज के मुखिया आईजी के निर्देश पर कोरबा जिले में कबाड़ का काम बंद है तो वे भला क्यों ऐसे चुनिंदा कबाड़ियों को अपना संरक्षण देकर वर्दी के साथ दगाबाजी और अधिकारियों के भरोसे को पलीता लगाने पर तुले हुए हैं? आखिर जमीर भी कोई चीज होनी चाहिए।