0 गेवरा क्षेत्र से पायलट प्रोजेक्ट की होगी शुरुआत
कोरबा । छत्तीसगढ़ के कोयलांचल में हरित आवरण को बढ़ावा देने के लिए एसईसीएल पहली बार जापानी पद्धति मियावाकी की मदद से वृक्षारोपण करने जा रही है। गेवरा क्षेत्र में पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर 2 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल विकसित करने के लिए काम होगा। यह परियोजना लगभग 4 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम के साथ साझेदारी में लागू की जाएगी।
मियावाकी तकनीक का उपयोग करके वृक्षारोपण 2 वर्षों की अवधि में किया जाएगा जिसमें लगभग 20 हजार पौधे लगाए जाएंगे। वृक्षारोपण में बड़े पेड़ जैसे बरगद, पीपल, आम, जामुन आदि, मध्यम आकार के वृक्ष जैसे बेल, करंज, आंवला, अशोक आदि एवं छोटे पेड़ जैसे कनेर, गुड़हल, त्रिकोमा, बेर, अंजीर, निम्बू आदि शामिल होंगे।
0 मियावाकी वृक्षारोपण विधि
तेजी से जंगलों को विकसित करने की लोकप्रिय जापानी तकनीक वृक्षारोपण की मियावाकी पद्धति की शुरुआत 70 के दशक में जापानी वनस्पतिशास्त्री और पादप पारिस्थितिकी (प्लांट इकोलॉजी) विशेषज्ञ श्री अकीरा मियावाकी ने की थी। वृक्षारोपण की इस तकनीक में प्रत्येक वर्ग मीटर के भीतर देशी पेड़, झाड़ियाँ और ग्राउंडकवर पौधे लगाए जाते हैं। यह कम जगह में तेज़ी से घने जंगल को विकसित करने के लिए एक आदर्श विधि है। मियावाकी वृक्षारोपण के लिए चुनी गई प्रजातियाँ आम तौर पर ऐसे पौधों की होती हैं जिन्हें बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है और वे विषम मौसम परिस्थितियों एवं कम पानी में भी पनप सकते हैं जिससे कम समय में एक घना जंगल विकसित करने में मदद मिलती है। इस पायलट परियोजना से कम समय में देश की सबसे बड़ी कोयला खदान गेवरा खदान के आसपास हरित आवरण बढ़ाने में मदद मिलेगी। फलदार, एवेन्यू और सजावटी पेड़ों की स्वदेशी प्रजातियों से बना जंगल स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा। परियोजना के तहत विकसित जंगल धूल के कणों को सोखने में एवं सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।